ईश्वर क्या है ?
सम्पूर्ण संसार या सृष्टि या ब्रह्माण्ड के एक-एक जीव और जड़ से लेकर चेतन तक को नियंत्रित करने वाली शक्ति का नाम ईश्वर है। ईश्वर को हम तरह तरह के नामों से पुकारते हैं सत्य, ज्ञान, भगवान, प्रेम, आनंद इत्यादि।
वेद में इसका बहुत सुन्दर निरूपण है।
यस्माद् खल्विमानी भूतानि जायन्ते। येन जातानि जीवन्ति। यस्मिन् लयमेष्यन्ति। तद् ब्रम्ह ||
अर्थात् : जिसमें से सम्पूर्ण जगत की उत्पति होती है, उत्पति के बाद जिससे जीवन मिलता है, तथा अंत में जिसमें जीवन मिलता है, वही ब्रम्ह है।
इसमें – 1. उत्पति, 2. स्थिति तथा 3. लय, ये तीनों क्रियाएं बतलाई गई हैं।
जिसमें ये तीनों क्रियाएँ हैं वही ईश्वर है।
सरल अर्थों में समझो तो :
विश्व का प्रत्येक जीव एकमात्र आनंद (सुख) चाहता है और उस आनंद को प्राप्त करने के लिए वह प्रत्येक क्षण कर्म कर रहा है। उसके प्रत्येक कर्म का लक्ष्य केवल आनंद पाना है। कोई भी जीव कभी भी दुःख नहीं चाहता या चाह सकता।
आनन्दो ब्रह्मेति व्यजानात्। आनंदात् एव खल्विमानि भूतानि जायंते। आनंदेनैव जातानि जीवंति। आनन्दं प्रयन्त्यभिसंविशन्तीति। सैषा भार्गवी वारुणी विद्या। परमे व्योमन्प्रतिष्ठिता।…….
हम कोई भी कर्म करते हैं एकमात्र आनंद पाने के लिए ! रो रहे हैं, हॅंस रहे हैं, बोल रहे हैं, सुन रहे हैं, सो रहे हैं, आत्महत्या कर रहे हैं, कुछ भी कर रहे हैं बस एकमात्र इसीलिए कि हमें आनंद मिल जाए, हम दुःख नहीं चाहते। हाँ बस हम गलत सोच लेते हैं कि अमुक कार्य करने से हमें आनंद मिल जाएगा। उस लड़की से शादी हो जाएगी तो हमें आनन्द मिल जायेगा। यह डिग्री, यह नौकरी, यह कार, यह चीज करने से हमें आनंद मिल जायेगा पर ऐसा नहीं होता, क्योंकि वहाँ आनंद है ही नहीं। आनंद आत्मा का एकमात्र लक्ष्य है। चूँकि आत्मा परमात्मा का अंश है और परमात्मा या ईश्वर ही आनंद है, इसीलिए अंशी अपने अंश से स्वभावतः प्रेम करेगा।
अनंत ब्रम्हा, विष्णु, महेश इत्यादि सब इसी आनंद के दास हैं। वे भी निरंतर इसी आनंद को पाने के लिए कर्म कर रहे हैं।
यही आनंद ईश्वर है।
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