भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

तुलसीदास जी की जयंती

आज महाकवि तुलसीदास जी की जयंती है ।
हम धर्मानुरागी और अध्यात्मानुरागी जनों के लिए ऐसे भगवद्भक्त और महापुरुष ही वीर स्वतंत्रता सेनानी हैं, जो अपने भगवदीय ज्ञान से हम अज्ञानी मायाधीन जीवों को माया की विभीषिका से बचाते हुए हमें माया के बंधनों से, अज्ञान से मुक्त करते हैं और स्वतंत्रता दिलाते हैं । जिनके महाकाव्यों, भाष्यों और वैदिक ज्ञान से परिपूर्ण भाषणों और हुंकार से हम अज्ञानी जीव अपने घोर अज्ञान की नींद से जागते हैं और माया के विकारों जैसे काम, क्रोध, मोह, मद, ईर्ष्या, लोभ, अहंकार आदि से लड़ने को उद्यत होते हुए सेनानियों की तरह साधना मार्ग में प्रवृत्त होते हैं और आत्मकल्याण करते हैं ।

मायाबद्ध जीव निरंतर दुःख पाता है बिल्कुल पराधीन व्यक्ति की तरह । पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं । उसी प्रकार हम मायाबद्ध जीवों को स्वप्न में भी सुख या आनंद का लवलेश तक नहीं प्राप्त होता है । जो हमें सुख का आभास मात्र होता है, वह एकमात्र दुःख ही होता है जो सुख के वेश में हमें मिलता है ।

इसीलिए हम साधकों का, हम जीवों का, हम मनुष्यों का, हम भगवतानुरागी, अध्यात्मानुरागी और आनंदानुरागी जीवों का एकमात्र लक्ष्य स्वयं की स्वतंत्रता है जो भोग योनियों से लेकर कर्म योनियों तक में दुःख प्राप्ति से मुक्ति है । हमें इन्हीं स्वतंत्रता सेनानी संतों महापुरुषों या भगवदप्राप्त संतों के नेतृत्व में या सानिध्य में अपने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़नी है और स्वयं को मुक्त कराना है ताकि हम स्वयं अपना संविधान लिख सकें जहाँ आनंद ही आनंद है ।

आज ऐसे ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी की जयंती है जिन्होंने कई मायाबद्ध जीवों को जगाकर उन्हें उनके बंधनों से मुक्त किया है । ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी महाकवि परम भक्त महाराज तुलसीदास जी को शत-शत नमन । महाकवि तुलसीदास जी की जयंती को “अवधी दिवस” के रूप में भी मनाने की परंपरा शुरू करनी चाहिए ।

भज गोविंदं भज गोविंदं गोविंदं भज मूढ़मते ।
भज श्रीरामं भज श्रीरामं श्रीरामं भज मूढ़मते ।।

तुलसीदास जी की जयंती

आज महाकवि तुलसीदास जी की जयंती है ।
हम धर्मानुरागी और अध्यात्मानुरागी जनों के लिए ऐसे भगवद्भक्त और महापुरुष ही वीर स्वतंत्रता सेनानी हैं, जो अपने भगवदीय ज्ञान से हम अज्ञानी मायाधीन जीवों को माया की विभीषिका से बचाते हुए हमें माया के बंधनों से, अज्ञान से मुक्त करते हैं और स्वतंत्रता दिलाते हैं । जिनके महाकाव्यों, भाष्यों और वैदिक ज्ञान से परिपूर्ण भाषणों और हुंकार से हम अज्ञानी जीव अपने घोर अज्ञान की नींद से जागते हैं और माया के विकारों जैसे काम, क्रोध, मोह, मद, ईर्ष्या, लोभ, अहंकार आदि से लड़ने को उद्यत होते हुए सेनानियों की तरह साधना मार्ग में प्रवृत्त होते हैं और आत्मकल्याण करते हैं ।

मायाबद्ध जीव निरंतर दुःख पाता है बिल्कुल पराधीन व्यक्ति की तरह । पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं । उसी प्रकार हम मायाबद्ध जीवों को स्वप्न में भी सुख या आनंद का लवलेश तक नहीं प्राप्त होता है । जो हमें सुख का आभास मात्र होता है, वह एकमात्र दुःख ही होता है जो सुख के वेश में हमें मिलता है ।

इसीलिए हम साधकों का, हम जीवों का, हम मनुष्यों का, हम भगवतानुरागी, अध्यात्मानुरागी और आनंदानुरागी जीवों का एकमात्र लक्ष्य स्वयं की स्वतंत्रता है जो भोग योनियों से लेकर कर्म योनियों तक में दुःख प्राप्ति से मुक्ति है । हमें इन्हीं स्वतंत्रता सेनानी संतों महापुरुषों या भगवदप्राप्त संतों के नेतृत्व में या सानिध्य में अपने स्वतंत्रता की लड़ाई लड़नी है और स्वयं को मुक्त कराना है ताकि हम स्वयं अपना संविधान लिख सकें जहाँ आनंद ही आनंद है ।

आज ऐसे ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी की जयंती है जिन्होंने कई मायाबद्ध जीवों को जगाकर उन्हें उनके बंधनों से मुक्त किया है । ऐसे महान स्वतंत्रता सेनानी महाकवि परम भक्त महाराज तुलसीदास जी को शत-शत नमन । महाकवि तुलसीदास जी की जयंती को “अवधी दिवस” के रूप में भी मनाने की परंपरा शुरू करनी चाहिए ।

भज गोविंदं भज गोविंदं गोविंदं भज मूढ़मते ।
भज श्रीरामं भज श्रीरामं श्रीरामं भज मूढ़मते ।।