प्रायः पेड़-पौधों की प्रजाति को लोग वनस्पति समझ लेते हैं जो कि ग़लत है । वनस्पति का अर्थ होता है, वन का राजा या वन का पति ।
वनस्पति सभी पेड़-पौधों को नहीं कहा जाता है । वनस्पति विज्ञान के नाम से आधुनिक लेखकों ने सभी पेड़ पौधों को एक ही वर्ग में डाल दिया है जो कि बिल्कुल ग़लत अवधारणा है। इस अवधारणा को अगर कोई तोड़ेगा या सही सही बताएगा तो उसे ही गालियाँ पड़ेंगी क्योंकि कोई नहीं चाहता कि सदियों से सुलभ सिद्धांत या ज्ञान पर कोई उँगली उठाये किंतु सभी पेड़-पौधों को वनस्पति अर्थात् वन का राजा या जंगल का अधिराज तो कह नहीं सकते । वन में विचरने वाले सभी जीवों को वनराज या सिंह तो कहा नहीं जा सकता ।
पेड़-पौधों का वर्गीकरण निम्नलिखित छः प्रकार से किया जाता है।
1. वनस्पति, 2. औषधि, 3. लता, 4. त्वक्सार, 5. वीरुध, 6. द्रुम
अब आइए इन्हें बारी-बारी से समझते हैं ।
1. वनस्पति : इस प्रजाति के पेड़-पौधे बिना बौर आये फल देते हैं । इनके वृक्ष पर एक नहीं कई जीवों की प्रजातियों का पालन-पोषण होता है और यह अपने साथ कई पेड़-पौधों को भी सहारा देते हैं । ये पूरा बड़ा Ecosystem अपने साथ रखते हैं । इनमें पुष्प नहीं आते अर्थात बौर नहीं आते, वस्तुतः आते हैं पर, दृष्टिगोचर होने से पहले फल के रूप में बन जाते हैं ।
जैसे- पीपल, बरगद, गूलर, पाकड़ या Ficus प्रजाति के सभी पेड़ वनस्पति कहलाते हैं । Ficus प्रजाति के अलावा भी वे सभी वृक्ष जिनमें पुष्प दिखे बिना ही फल लगते हैं, वे सब वनस्पति कहलाते हैं । किसी भी वन में इन्हीं का वर्चस्व सर्वाधिक होता है।
इनमें सबसे अधिक मात्रा में ऊर्जा और विकिरण को सोखने की क्षमता होती है । ऊर्जा के सबसे अधिक निकालने वाले और जीव-जंतुओं के जीवन को अत्यधिक प्रभावित करने वाले यही वृक्ष होते हैं ।
इसीलिए कभी इन वृक्षों के नीचे ध्यान या साधना करने बैठिए तो ध्यान का केन्द्रीयकरण होने लगता है और मन का संचालन उर्ध्वमुखी होता है । इसीलिए ऋषि-मुनि और महात्मा इत्यादि सभी इसी वृक्ष के नीचे ही शिक्षण और ध्यान करते रहे हैं । इसकी इतनी बड़ी ऊर्जा होती है कि जो व्यक्ति इसके नीचे निरन्तर रहने लगता है उसको वैराग्य हो जाता है ।
महात्मा बुद्ध ने इसी वृक्ष के नीचे निर्वाण की प्राप्ति की थी ।
इसीलिए भगवान ने गीता में कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ । इसी ऊर्जा के कारण इन वृक्षों को मन्दिर या देवालय के पास लगाने का प्रावधान है ।
इसकी पत्तियों में इतनी ऊर्जा होती है कि आप इससे छोटी battery तक चार्ज कर सकते हैं । इस प्रजाति पर बहुत शोध की आवश्यकता है, लेकिन हमारा आधुनिक विज्ञान हमें यह सब नहीं करने देता ।
यह वैराग्य की अंतिम अवस्था तक को प्राप्त कराने में सहायक होता है इसलिए इसे गृहस्थों को घर में लगाने या घर के आस-पास लगाने को मना किया जाता है । पीपल, बरगद, गूलर इत्यादि की पूजा इसीलिए की जाती है ।
सबने शांतिपाठ पंडितों से सुना ही होगा….
ॐ द्यौः शान्ति: वनस्पतयः शांतिरोषधयः शांति ………..
वनस्पति और औषधि दोनों को ही शांति अर्थात् आनंद प्रदान करने वाला, विकृत नहीं हो, ऐसा होने को कहा गया है । क्योंकि यही दोनों मूलाधार हैं जीवन-प्रणाली के।
पीपल वृक्ष के नीचे रोगी का उपचार किया जाय या उसे रखा जाय तो वह शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ करेगा । बहुत बड़ा विज्ञान है इसमें, यह तो सतही तौर से बता रहा हूँ l
2. औषधि :- यह वह पादप श्रृंखला होती है जिनमें फूल-फल तो आते हैं लेकिन जैसे ही फल पक जाते हैं, यह स्वयमेव नष्ट हो जाते हैं । जैसे- जौ, चना, उड़द, दाल, तिलहन, या समस्त औषधियाँ जिन्हें आप औषधि के रूप में जानते हैं । यह वह पादप श्रृंखला हैं जो जीव को रोगमुक्त करती हैं और वह समस्त अवयव प्रदान करती हैं जिससे बाहरी रोगों से रक्षण हो सके। शांति: औषधयः ।
3. लता :- यह वह पादप श्रृंखला हैं जो बेल के रूप में किसी अन्य वृक्ष की सहायता से ऊपर चढ़ती हैं ।
4. त्वक्सार :- यह वे पादप हैं जिनकी छाल बहुत कठोर होती है । जैसे बाँस, दारुचीनी ( जिसको हम लोग दालचीनी कहते हैं ), सन का पेड़ आदि ।
5. वीरुध :- वे लतायें जो पृथ्वी या भूमि पर ही फैलती हैं । जैसे दूर्वा, खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज, कद्दू इत्यादि ।
6. द्रुम :- वे सभी वृक्ष जिनमें फूल आकर फल लगते हैं । जैसे आम, जामुन, नीम इत्यादि ।
धन्यवाद !
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