माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ।।
मानसिक जाप स्मरण, उनकी लीलाओं का ध्यान, उनके रूप का ध्यान, अंतःकरण में लगातार उनकी स्मृति बने रहने से श्रेष्ठ न कोई साधन था, न है और न ही बनेगा ।
भगवान के यहाँ इंद्रियों की साधना या आवागमन का कोई फल नहीं है । भगवान उसे टिप्पणी ही नहीं करते । चाहे अनंत वर्ष तक इंद्रियों से साधना करते रहो, उसका फल शून्य है ।
मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है । मन ने ही अनंत जन्मों से हमें इस भव सागर में डाल रखा है । मन ही हर कर्म का कर्ता है ।
मन ही इंद्रियों का स्वामी है । जो कुछ भी हम देख रहे हैं या देखेंगे या देख रहे थे सबका कारक और कारण मन है ।
मन से ही संसार है । मन में ही संसार है । मन ही संसार है ।
चित्तमेव हि संसारः ।
मनमेव हि संसारः तत प्रयत्नेन शोधयेत ।
मन ही सब कुछ है ।
इसीलिए मन को साधना करनी है, इंद्रियों को नहीं, शरीर को नहीं, जिह्वा को नहीं, हाथ पैर को नहीं ।
यह तो मात्र helper हैं ।
एक मन ही है जो सबके पास है ।
बाकी का अगर इंद्रियों की साधना का फल मिलता तो सभी अपाहिज, लूले लंगड़े, जिनके हाथ नहीं है, गूँगा, अंधा, बहरा सब अनशन पर बैठ जाते कि हमें भगवदप्राप्ति कैसे होगी क्योंकि हमारे हाथ नहीं है हम माला नहीं जप सकते, पैर नहीं है तीर्थ नहीं कर सकते, आँख नहीं है मंदिरों के दर्शन नहीं कर सकते, जीभ नहीं है स्तुति नहीं कर सकते, मंत्र नहीं बोल सकते, कान नहीं है तुम्हारी कथा नहीं सुन सकते इत्यादि ।
लेकिन भगवान ने मन दिया है । यह सबके पास होता है ।
जितनी साधनायें बनी हैं, केवल मन के लिए । जितने शास्त्र बने हैं केवल मन के लिए, शरीर या कान के लिए नहीं ।
मन को समझाने के लिए । जितने महापुरुषों ने रचनाएं की है केवल मन के लिए ।
अरे मन, काहे करत गुमान ।
अरे मन दिन दिन बीतत जात ।
अरे मन, क्यों नहीं हरि गुण गा रहा ।
मनवा तू इठलाये काहे ।
रे मनवा मूरख निपट गमार ।
सब मन ।
इंद्रियों की भक्ति से कुछ नहीं होगा, यह स्वर्ण अक्षरों में सब लिख लें, रट लें, कंठस्थ कर लें ।
इन्द्रियाँ मात्र सहायक हैं ।
ये झोली माला इसलिए दे दिया जाता है कि यह मन बहुत चंचल है । झोली माला से बार-बार यह अभ्यास होगा कि हमें नाम स्मरण करना है ।
यह ध्यान रहे संख्या नहीं पूरी करनी है ।
संख्या तो एकमात्र नियमन के लिए है । नियम में ढालने के लिए ।
जैसे बच्चों को बोला जाता है न कि ये 5 बार लिख कर दिखाओ या यह रट लगाओ । ताकि अभ्यास हो जाये मन को । अभ्यास से ही फिर धीरे-धीरे बात आगे बढ़ेगी ।
जो सोचते हैं कि इतनी संख्या मैंने पूरी कर ली माला की तो वह उनका केंद्र संख्या पूरी करने तक ही रहता है ।
कोई 10 करोड़ बार नाम जपे और कोई एक बार ही गोविंद या राधे बोलते ही कंठ अवरुद्ध हो जाये, प्रेम की धारा आंखों से बह निकले, गला भर्रा जाए, बोला ही न जाये, छाती पर हाथ धरकर बैठ जाये ।
तो बस एक नाम ही असंख्य नामों पर भारी पड़ जायेगा ।
आकंठ प्रेम में डूबना है । नाम का रटना नहीं लगाना है ।
गोपियाँ कहती थी कि रे सखी तू उसका नाम मेरे सामने मत ले लेना, मैं अपने कान बंद कर लूँगी । उसका नाम मेरी जिह्वा पर नहीं आना चाहिए ।
क्या यह प्रेम नहीं है ? इन्हीं गोपियों की चरण रज को प्राप्त करने के लिए नारद जी वृन्दावन में लोट लगा रहे हैं कि आह ऐसा प्रेम !
यथा ब्रज गोपिकानां । यह सूत्र बना दिया नारद भक्ति दर्शन सूत्र में प्रेम की परिभाषा को लेकर कि जैसा प्रेम गोपियो का है वही प्रेम है और सब बकवास है ।
तो एकमात्र मन को देना है ।
– Sh. Shwetabh Pathak Ji ( श्री श्वेताभ पाठक जी )
Who is God?
ईश्वर क्या है ?सम्पूर्ण संसार या सृष्टि या ब्रह्माण्ड के एक-एक जीव और जड़ से लेकर चेतन तक को नियंत्रित करने वाली शक्ति का नाम ईश्वर है। ईश्वर को हम तरह तरह के नामों से पुकारते हैं सत्य, ज्ञान, भगवान, प्रेम, आनंद इत्यादि।वेद में इसका बहुत सुन्दर निरूपण है।यस्माद्...