भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

Shwet Gyan

(महत्वपूर्ण लेख)

मन के बारे में

इस संसार में और संसार के किसी भी तत्व में न सुख है न दुःख है । सुख दुख सब मन द्वारा निवेशित है प्रत्येक तत्व में ।
इसीलिए शंकराचार्य जी ने कहा सत्यं ब्रह्म जगत मिथ्या । मिथ्या का अर्थ लोग कुछ और ही कर देते हैं और फिर सिद्धान्त से भटक जाते हैं ।

अध्यात्म के बारे में

दरिद्र कौन है ?
अगर आपके जीवन में सब कुछ है, धन है, हर प्रकार के भोग, सुख-सुविधा तथा साधन हैं, लेकिन अध्यात्म नहीं है, तो आप दरिद्र हैं। ये आप संसार के जितने भोग-विलास या सुख के साधन देख रहे हैं, सब एक क्षण के अंदर समाप्त हो जायेंगे। और यह अध्यात्म की दरिद्रता समस्त दुःखों की जननी है।

मंदिर का अर्थ

वह सर्वत्र समान रूप से व्याप्त है। ऐसा नहीं है कि उनकी शक्तियाँ या वह कहीं कम, कहीं ज्यादा व्याप्त है। जो भगवान कुत्ते में व्याप्त हैं, वही भगवान समान रूप से हाथी में, चीटीं में, पापी में, पुण्यात्मा में, मन्दिर के देवालय में और वही भगवान मल-मूत्र के कण-कण में भी व्याप्त हैं।

भक्ति का प्रारूप क्या है ?

चन्दन लगा लो, एक लोटा जल चढ़ा दो, अगरबत्ती से धुआँ कर दो, शनि को तेल चढ़ा दो, 4 माला जाप कर लो, घंटी बजा दो, तरह-तरह के चालीसा का पाठ कर लो, वैभव लक्ष्मी का व्रत कर लो, मंगलवार को प्रसाद चढ़ा दो, पीपल में धागा बाँध दो, भूखे रह लो, एकादशी व्रत, तरह-तरह के उपवास कर लो इत्यादि-इत्यादि इन्हीं सब में सीमित रह गया है ।

तीर्थ

सतत प्रतीक्षा अपलक लोचन ।
जल्दी बुला लो मेरी स्वामिनी ।।
वृन्दावन रसिकन रजधानी ।
जा रजधानी की ठकुरानी, महारानी राधा रानी ।।

पर्यावरण एवं अध्यात्म

आईये जानते हैं पर्यावरण के विषय में और समझते हैं कि किस प्रकार के पर्यावरण के विषय में हमारे शास्त्रों में निरूपण है ।
पर्यावरण : परि + आवरण अर्थात अपने आस-पास के वातावरण जहाँ हम निवास करते हैं या वह परिवेश जो जीवन को जीने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वहन करे l

प्रारब्ध

प्रारब्ध क्या होता है ?

उत्तर- भगवान हमारे अनंत पुण्य व अनंत पापों में से थोड़ा-थोड़ा लेकर हमारे किसी एक जन्म का प्रारब्ध तैयार करते हैं और मानव जीवन के रूप में हमें एक अवसर देते हैं ताकि हम अपने आनंद प्राप्ति के परम चरम लक्ष्य को पा लें। प्रारब्ध सबको भोगना पड़ता है।

माला फेरत जुग भया

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ।।

मानसिक सुमिरन स्मरण, उनकी लीलाओं का ध्यान, उनके रूप का ध्यान, अंतःकरण में लगातार उनकी स्मृति बने रहने से श्रेष्ठ न कोई साधन था, न है और न ही बनेगा ।
भगवान के यहाँ इंद्रियों की साधना या आवागमन का कोई फल नहीं है ।

हमारे त्यौहार

त्योहारों का महत्व हमारे जीवन में बहुत अद्वितीय होता है। ये हमें समृद्धि, एकता, और आनंद का अहसास कराते हैं। हर त्योहार अपनी विशेषता के साथ आता है और हमारी सांस्कृतिक धारा को मजबूत करता है। भारत में विभिन्न धार्मिक समुदायों के अनुसार अनेक प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं, जो समृद्धि और समरसता की भावना को उत्तेजित करते हैं।