भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

परशुराम जयंती

शास्त्रों एवं शस्त्रों के ज्ञाता, जमदाग्निनंदन, भृगुकुल चन्दन, अहंकारी एवं अत्याचारी हैहयवंशी आततायियों का 21 बार नाश करने वाले, भगवान के आवेशावतार, शिवभक्त, भगवान के छठे अवतार भगवान परशुराम के प्राकट्य दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं । भगवान परशुराम शास्त्रज्ञ, नीतिज्ञ, धर्मपालक एवं अस्त्र-शस्त्रों के स्वामी हैं । सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष, विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु, श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु धारण करने के कारण यह शस्त्रों के स्वामी एवं पालक कहे जाते हैं । अमोघ शस्त्र परशु धारण करने के कारण इन्हें परशुराम कहा जाता है ।

त्रेतायुग में भगवान राम द्वारा इनके आवेश/तेज को हरण कर लिया गया था और भगवान ने इन्हें कल्प के अंत तक पृथ्वी पर रहकर तप करने की आज्ञा दी और यह भी वर दिया कि कलियुग के अंतिम चरण में जब स्वयं भगवान कल्कि अवतार लेकर आयेंगे तब इन्हें गुरु पद देकर सम्मानित करेंगे और इन्हीं से सभी शास्त्र एवं शस्त्र की शिक्षा ग्रहण कर सभी पापियों का संहार करेंगे । अभी भगवान परशुराम गहन समाधि में तपश्चर्या में लीन होकर कलियुग के अंत की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।

कलियुग में ब्राह्मणों, भगवान के भक्तों, संतों और सदाचारियों के लिए भगवान परशुराम एकमात्र रक्षक हैं। ज्यों-ज्यों कलियुग अपना प्रभाव दिखाता जा रहा है त्यों-त्यों भगवान परशुराम के अनुयायी बढ़ते चले जा रहे हैं और इनके पूजने वालों में भी वृद्धि हो रही है जो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि कलियुग के अंत तक सभी लोगों का आर्तनाद उन तक अवश्य पहुंचेगा और वह पृथ्वी की रक्षा हेतु भगवान कल्कि को अपनी सभी विद्याओं में पारंगत करते हुए आततायियों का अंत करने के लिए प्रेरित करेंगे

परशुराम जयंती

शास्त्रों एवं शस्त्रों के ज्ञाता, जमदाग्निनंदन, भृगुकुल चन्दन, अहंकारी एवं अत्याचारी हैहयवंशी आततायियों का 21 बार नाश करने वाले, भगवान के आवेशावतार, शिवभक्त, भगवान के छठे अवतार भगवान परशुराम के प्राकट्य दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं । भगवान परशुराम शास्त्रज्ञ, नीतिज्ञ, धर्मपालक एवं अस्त्र-शस्त्रों के स्वामी हैं । सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष, विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु, श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु धारण करने के कारण यह शस्त्रों के स्वामी एवं पालक कहे जाते हैं । अमोघ शस्त्र परशु धारण करने के कारण इन्हें परशुराम कहा जाता है ।

त्रेतायुग में भगवान राम द्वारा इनके आवेश/तेज को हरण कर लिया गया था और भगवान ने इन्हें कल्प के अंत तक पृथ्वी पर रहकर तप करने की आज्ञा दी और यह भी वर दिया कि कलियुग के अंतिम चरण में जब स्वयं भगवान कल्कि अवतार लेकर आयेंगे तब इन्हें गुरु पद देकर सम्मानित करेंगे और इन्हीं से सभी शास्त्र एवं शस्त्र की शिक्षा ग्रहण कर सभी पापियों का संहार करेंगे । अभी भगवान परशुराम गहन समाधि में तपश्चर्या में लीन होकर कलियुग के अंत की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।

कलियुग में ब्राह्मणों, भगवान के भक्तों, संतों और सदाचारियों के लिए भगवान परशुराम एकमात्र रक्षक हैं। ज्यों-ज्यों कलियुग अपना प्रभाव दिखाता जा रहा है त्यों-त्यों भगवान परशुराम के अनुयायी बढ़ते चले जा रहे हैं और इनके पूजने वालों में भी वृद्धि हो रही है जो इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि कलियुग के अंत तक सभी लोगों का आर्तनाद उन तक अवश्य पहुंचेगा और वह पृथ्वी की रक्षा हेतु भगवान कल्कि को अपनी सभी विद्याओं में पारंगत करते हुए आततायियों का अंत करने के लिए प्रेरित करेंगे