भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

प्रश्न:- क्या घर के मंदिर में भगवान की ज्यादा बड़ी प्रतिमा स्थापित नहीं करनी चाहिए ?
उत्तर:-
पहले के समय में घरों में मंदिरों का कोई विधान नहीं था। मन्दिर सदा एक ही स्थान पर बाहर रहते थे। आपने सुना होगा पुराणों इतिहासों में कि अमुक रानी या महारानी या राजकुमारी मन्दिर पूजन करने बाहर जाती थी। जैसे जब भगवान राम का वरण करना था तो माता सीता जी पार्वती जी के मंदिर गयी थीं। गोपियों ने भगवान कृष्ण के प्रेम की प्राप्ति के लिए कात्यायनी मन्दिर में पूजा की। रुक्मणि जी को भगवान ने मन्दिर से पूजा करते समय अपने रथ पर बिठाया था। पाण्डव से लेकर द्रौपदी तक सब लोग जहाँ-जहाँ चौदह वर्ष तक रहे अपने लिए मन्दिर की स्थापना की और वही पूजा की।
तो मन्दिर पहले बाहर ही रहते थे। घरों में मन्दिर का कोई प्रावधान नहीं था। साधना कक्ष ही एक स्थान होता था।
जब मुस्लिम आक्रांता भारत आये तब उन्होंने मन्दिर तोड़ने शुरू किए। उन्होंने हिंदुओं का मंदिर पर आना प्रतिबंधित कर दिया था। कर या टैक्स तक लगा दिया गया था।
तब चैतन्य महाप्रभु ने घर-घर मन्दिर की स्थापना को बल दिया।
जब मन्दिर तोड़े जाते थे उनकी मूर्तियों को भी ध्वस्त कर दिया जाता था। तब पुजारी या पण्डित क्या करते थे ?
ध्वस्तीकरण के पहले ही वह मन्दिर से मूर्ति उठाकर अपने घरों में स्थापित कर देते थे और उसी प्रकार दैनिक नित्य कर्म करते थे जैसे मंदिरों में होता था। कई मूर्तियाँ रहती थीं जिसे प्रत्येक हिन्दू अपने-अपने घरों में स्थापित कर देता था। बड़ी मूर्तियाँ नहीं ले जा सकते थे तो उसे भूमि में गाड़ देते थे, कुएँ में फेंक देते थे, किसी वृक्ष के कोटर में छुपा देते थे, कहीं नदी में बहा देते थे या अपने किसी परिचित के यहाँ भिजवा देते थे। जो आजकल देखा होगा आपने खुदाई में मिलते हैं।
इस तरह घर-घर में मन्दिर स्थापित हो गए क्योंकि लोग बाहर जा नहीं सकते थे l इसलिए सब घर में ही पूजा करने लगे।
आज भी आप देखेंगे कि ब्रजमंडल क्षेत्र में घर-घर में मूर्तियाँ स्थापित हैं।
लोगों ने अपने-अपने घरों की रजिस्ट्री तक भगवान के नामों पर या जो विग्रह वहाँ स्थापित है, उन पर की हुई है। आगरा, अलीगढ़, हाथरस इत्यादि कई जगहों पर आज भी पुराने गाँवों में यह प्रथा विद्यमान है कि घर ठाकुर जी के नाम पर है।
चैतन्य महाप्रभु के समय भी यही हुआ था। काजी ने तो भगवान के आरती, घण्टे पर भी रोक लगा दी थी। श्रीवास जी के आँगन में भगवान का पद चल रहा था तो वहाँ जाकर काजी के लोगों ने मारपीट की और वाद्य यंत्र तोड़ दिये। यह बात जब महाप्रभु को पता लगी तो वह बहुत रूष्ट हुए और तब उन्होंने ही काजी को सबक सिखाने के लिए नगर संकीर्तन का आयोजन किया, उन्होंने ही कीर्तन क्रांति की शुरूआत की।
आज भी isckon वालों को आपने देखा होगा कि वह हरे राम संकीर्तन करते हुए या हरि बोल संकीर्तन करते हुए देश विदेश में मिल जायेंगे। तो नगर संकीर्तन का प्रचलन महाप्रभु ने लोगों के अंदर से भय निकालने के लिए शुरू किया था। यही से सुबह का संकीर्तन, परिक्रमा संकीर्तन, नगर संकीर्तन और जो आज शोभायात्रा निकलती है ( रामनवमी, हनुमान जयंती या किसी अन्य पर्व पर ) इसके कर्ता-धर्ता हमारे महाप्रभु ही हैं। इन्होंने ही घर-घर संकीर्तन और मन्दिर स्थापित करवाये।
बड़ी मूर्तियाँ न छुपाई जा सकती थीं, न इनको लेकर तुरंत भागा जा सकता था, न इनकी स्थापना की जा सकती थी न ही कोई अन्य विधियाँ इन पर लागू की जा सकती थीं, इसलिए यह विधान बना दिया गया कि इतने इंच की मूर्तियाँ ही या अंगूठे के बराबर या 3 से 9 इंच की ही घर में स्थापित करें ताकि समय आने पर इनको लेकर, छुपाकर भागा जा सके।
तो मूर्ति चाहे बड़ी हो या छोटी हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप एक चावल के दाने के बराबर की मूर्ति से भी भगवदप्राप्ति कर सकते हैं और एक सूर्य के बराबर मूर्ति बनवाकर भी कूप मण्डूक रह सकते हैं और अनंतानंत योनियों में चक्कर लगा सकते हैं।

इन सब चक्करों में न पड़े। एकमात्र यह देखिये कि हमारा भगवान से कितने अंगूठे, कितना बड़ा, कितना इंच प्रेम बढ़ा। मूर्ति के इंच देखने से अच्छा है स्वयं के हृदय के प्रेम के इंच नापें, आपको सब मिल जाएगा। वरना इंचों को नापने में ही यह मानव जीवन बर्बाद हो जाएगा और इंच-इंच करके अनंतानंत योनियों में इंच-इंच पीड़ाएँ भोगने को मिलेंगी।

Who is God?

Who is God?

ईश्वर क्या है ?सम्पूर्ण संसार या सृष्टि या ब्रह्माण्ड के एक-एक जीव और जड़ से लेकर चेतन तक को नियंत्रित करने वाली शक्ति का नाम ईश्वर है। ईश्वर को हम तरह तरह के नामों से पुकारते हैं सत्य, ज्ञान, भगवान, ‌प्रेम, आनंद इत्यादि।वेद में इसका बहुत सुन्दर निरूपण है।यस्माद्...

Why Diya & Aarti

Why Diya & Aarti

दीपक जलाने का रहस्य, आरती का अर्थ:- पुराने समय में, मूर्ति को अँधेरे में रखा जाता था, जिसे गर्भ गृह कहते थे। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के बाद सूर्य निकलने से पहले लोग ध्यान के लिए मन्दिर जाते थे। रूप ध्यान करने के लिए मूर्ति की परिकल्पना की गई थी और आप तभी भगवान की...

Meaning of Temple

मंदिर का अर्थ:- हरि व्यापक सर्वत्र समाना। ईशावास्यमिदं सर्वं। वह सर्वत्र समान रूप से व्याप्त है। ऐसा नहीं है कि उनकी शक्तियाँ या वह कहीं कम, कहीं ज्यादा व्याप्त है। जो भगवान कुत्ते में व्याप्त हैं, वही भगवान समान रूप से हाथी में, चीटीं में, पापी में, पुण्यात्मा में,...