भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

प्रश्न- सब सुख सुविधा होने पर भी हम दुखी क्यों हैं ?

उत्तर- ज्यों ज्यों हम प्रकृति से दूर होते गये, त्यों त्यों अशांति, तरह तरह की व्याधियों के चपेट में आते गये l मन के साथ साथ तन भी अशांत होता चला गया l
ज्यों ज्यों आधुनिक होते गये त्यों त्यों हम प्रकृति की निश्चल ममता से दूर होते गये l
आधुनिकता की कालिमा ने प्रकृति की नैसर्गिक सुन्दरता का हरण कर लिया l इसी आधुनिकता के नंगे नाच नाचकर के हम लोगों ने सब प्रदूषित कर दिया l
आज प्रकृति से तो हम लोगों ने जैसे नाता ही तोड़ दिया है l आज शायद ही किसी के पाँव पृथ्वी की वह चुम्बकत्व एवं ऊर्जावान जमीन और मिट्टी को स्पर्श करते हों l आज तो मिट्टी का स्पर्श करना गंवारपन में शामिल हो गया l

हाय रे आधुनिकता, सब बर्बाद कर दिया l शुद्ध हवा में हम श्वांस नहीं ले सकते, शुद्ध जल हम पी नहीं सकते, पहले नदियों के जल, कुओं का जल हाथ में लेकर ऐसे पीते थे मानों अमृत ही पी रहे हों l
आकाश तक को प्रदूषित कर दिया हम लोगों ने l चन्द्रमा, तारों से भरा आकाश, सूर्य की वो मखमली किरण, चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे सोना, सब यह आधुनिकता लूट ले गयी l
मिटटी तक को हम लोगों ने नहीं छोड़ा , केमिकल खाद, यूरिया, प्लास्टिक इत्यादि डाल डाल कर पृथ्वी को श्वांस लेने से मरहूम कर दिया l
पेड़ पौधों तक को हमने नहीं छोड़ा l जो बचे हैं उनको भी संकर प्रजाति और किस्म की बनाने में हम लोग दिन रात लगे हुए हैं l
अट्टालिकाएं खड़ी की जा रही हैं l वनों को काट काट कर, खेती की भूमि का CLU ( Change of Land Use ) करवा करवा कर बस एकमात्र पैसे बनाने की होड़ लगी है l
दिन-रात का हमारा एक एक पल मोबाइल, क‌म्प्यूटर, electronic gadgets, Electrical gadgets के बीच में घूम रहा है l इतना रेडिएशन हमारा शरीर कैसे बर्दाश्त करता होगा ? बाहर निकलो तो मोबाइल टावर्स तरह तरह की तरंगों के बीच से हमारा जीवन गुजर रहा है l
प्लास्टिक, केमिकल खा रहे हैं, सूंघ रहे हैं, स्पर्श कर रहे हैं l मतलब हमारा कोई एक ऐसा कार्य हो जहाँ हम इन जहरीले उपकरणों से बचे हों l

हमारा ध्येय एकमात्र पैसा, पैसा, पैसा !!!
हम मूर्खों को पता नहीं कि ये पैसे खाए नहीं जायेंगे, ये पैसे पीये नहीं जायेंगे, ये पैसे शुद्ध श्वांस नहीं देंगे, ये पैसे एकमात्र diabetes, Cancer, Heart Attack, High/Low Blood Pressure, Motapa , चिडचिडापन, मानसिक अशांति ही देंगे l
लेकिन हम लोगों को कौन समझाए !! जो नींद में सोया हुआ होता है उसे जगाया जा सकता है पर जो सोने का नाटक कर रहा है, उसका विनाश निश्चित है l

पहले के लोग 90 साल तक चलते फिरते अपना काम करते थे, परन्तु आज वहीँ 50 तक आते आते लाठी टेक कर चलने की नौबत आ जाती है और जब तक मुट्ठी भर भर कर दवाई नहीं ली जाए, नासिका से श्वांस न आये l

न जाने हम क्या छोड़कर जा रहे हैं अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए l

पहले के लोगों को हम अनपढ़ बोलते हैं कि उनके पास technology नहीं थी l वो तो सबसे बड़े पढ़े लिखे थे जिन्हें पता था कि प्रकृति ही एकमात्र उनका जीवन है, आधार है l और सबसे बड़े अनपढ़ हम हैं जो इन technology के पीछे आने वाली ताड़का जैसे विशाल दुर्दांत परिस्थिति को नहीं देख पा रहे हैं l

कुछ नहीं ! भोगेंगे , भोगेंगे , भोगेंगे !
जाके विधिना दुःख लिख दीन्हा l
ताके मति पहिले हर लीन्हा ll

सुख दु:ख का आभास

सुख दु:ख का आभास

मन को यह आभास एकमात्र अज्ञान के कारण होता है । गलत ज्ञान होना ,यही समस्त दुखों का कारण है । कुमति कीन्हि सब विश्व दुःखारी । एकमात्र गलत मति के कारण , अज्ञान के कारण यह सम्पूर्ण चराचर दुःखी है । हमने या हमारे मन ने जिस में सुख दुख माना होता है , वही हमें सुख और दुख...

When You Feel Low

When You Feel Low

सिर दर्द हो, थकान हो, शरीर से लेकर मन में शिथिलता हो, मन बहुत ही व्यग्र हो, आपको शांति चाहिए हो, तब एक काम कीजियेगा । अपने आस-पास कोई पुराना वृक्ष ढूँढिये । पीपल, आम, बरगद, नीम या कोई भी । पीपल या बरगद हो तो और भी अच्छा । लेकिन यह ध्यान रखिएगा कि पुराना हो । पुराना न...

मन के विषय में

मन के विषय में

इस संसार में और संसार के किसी भी तत्व में न सुख है न दुःख है । सुख दुख सब मन द्वारा निवेशित है प्रत्येक तत्व में ।इसीलिए शंकराचार्य जी ने कहा सत्यं ब्रह्म जगत मिथ्या । मिथ्या का अर्थ लोग कुछ और ही कर देते हैं और फिर सिद्धान्त से भटक जाते हैं ।इस संसार में जो कुछ भी...