भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

विजय दशमी/ दशहरा

रावण के विषय में:-
ज्ञानवान होना बहुत ही अच्छी बात है । शक्तिशाली होना भी बहुत ही अच्छी बात है । हर तरह के गुण होना भी बहुत अच्छी बात है, और यह सब विरलों में ही पाया जाता है ।ज्ञान और बुद्धि या विवेक में बहुत बड़ा अंतर है।कोई उस प्रदत्त ज्ञान का किस प्रकार उपयोग करता है या कर रहा है, यही उस व्यक्ति को महान बनाता है l शक्तिशाली होना और उस शक्ति का प्रयोग करना दोनों में जमीन आसमान का अंतर है । ज्ञान का उपयोग या दुरूपयोग व्यक्ति के विवेक या बुद्धि पर निर्भर करता है । जैसे आपके पास बिजली जैसी अद्भुत शक्ति है । बिजली जैसी शक्ति का उपयोग आप AC चलाकर, Fan चलाकर, रोशनी करके प्रयोग करते हैं या उसका प्रयोग आप किसी को करंट लगाकर या नंगे तार को पकड़कर अपने आप को या किसी दूसरे को हानि पहुँचा कर करते हैं यह आप की संस्कृति, संस्कार या सीख पर निर्भर करता है ।

पानी किसी को दिया गया, वह चाहे उसे पीकर अपना लाभ ले या उस पानी का बर्फ बनाकर उसका दूसरी तरह लाभ ले या उसे नाली में गिरा दे । पानी होना बहुत बड़ी बात नहीं है, उसका किस तरह और किस मद में उपयोग किया जा रहा है यह प्रमुख बात है ।
आज नाभिकीय ऊर्जा या आणविक ऊर्जा का प्रयोग आप बिजली उत्पादन और मानव जाति के कल्याण के लिए कर सकते हैं या उससे Nuclear Bomb या Atomic Bomb बना कर दुनिया का सर्वनाश कर सकते हैं ।एक बंदूक जब एक सैनिक के हाथ में जाती है तो उसकी महत्ता बढ़ जाती है पर यही बंदूक जब किसी आतंकवादी के हाथ में जाती है तो वह लोगों की बेहिसाब हत्याएँ करता है । यह कहना कि अरे वाह ! उसके हाथ में बंदूक है वह बहुत ही महान प्राणी है, यह दुर्बुद्धि का प्रतीक है और कुछ नहीं । ऐसे ही अल्पज्ञ और शास्त्रों को न समझने वाले प्राणी आजकल रावण को बहुत महान बता रहे हैं कि वह बहुत ज्ञानी था, वह वेदों का ज्ञाता था, वह अत्यंत बलशाली था, वह ब्राह्मण था इसीलिए उसकी पूजा होनी चाहिए, Bla Bla ऐसा कहने वाले निरा मूर्ख हैं । हाँ, दुबारा सुन लीजिये निरा मूर्ख हैं ।

ज्ञान और शक्तियाँ होना एक आम बात है । उसका उपयोग कौन कैसे कर रहा है, यही उस व्यक्ति को महान या शैतान बना देता है ।पूजनीय वही है जिसके पास शक्ति हो पर उसका प्रयोग वह संसार के या सभी जीवों के हित के लिए कर रहा हो ।शैतान या दानव किसे कहा जाता है ? ऐसा उन्हीं लोगों को कहा जाता है जिनके पास अथाह शक्ति होती है पर वह उसका दुरुपयोग करते हैं, लोगों की हानि करते हैं । रावण ऐसा ही था । वह ब्राह्मण कुल में जन्मा जरूर था पर उसके कार्य सभी दैत्य वाले ही थे । रावण की माता कैकसी एक दानव स्वभाव वाली स्त्री थी । रावण वेदों का ज्ञाता एकमात्र अपने पिता विश्रवा के कारण हुआ । वह अत्यंत शक्तिशाली था परन्तु उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग किसके निमित्त किया ? ऋषियों-मुनियों को सताने के हेतु । उसी का प्रश्रय लेकर ताड़का, खरदूषण इत्यादि वनों में रहने वाले ऋषियों के यज्ञ खंडित किया करते थे । उसी का अवलम्ब पाकर मारीच, कालनेमि और अन्य दैत्य लोगों पर अत्याचार करते थे ।

क्या वेद पढने का या उसका ज्ञाता होने की यही सार्थकता है ?
रावण बहुत शक्तिशाली था, पर उस शक्ति का प्रयोग क्या किया उसने ? अपने ही भाई कुबेर से उसकी लंका छीन ली, एक विवाहित स्त्री को बलात् हरण किया, अहंकार और मद में इतना अंधा कि महादेव के निवास कैलाश को ही उठाने का दुस्साहस, बालि को ललकार कर उसका राज्य हड़पने की एक असफल कोशिश, अपने तेज, बल और तपोबल का सहारा लेकर लोगों पर राज करने के उद्देश्य से ब्रह्मास्त्र, चंद्रहास, नागास्त्र इत्यादि दिव्यास्त्रों का संग्रह । अपने लंका में दानवी स्वभाव वाले व्यक्तियों को आश्रय देना । विभीषण जैसे भक्त को लात मारकर बाहर निकालना आदि ।

भले ही कोई बड़े कुल में जन्मा हो, पर अगर उसके कर्म नीच हैं तो वह शूद्र की श्रेणी में ही आएगा । ऐसे ही रावण कितना भी बड़ा वेदपाठी क्यों न हो पर अगर वह कर्म से दानव स्वभाव का है तो वह निंदनीय है ।ऊँचे कुल का जनमियाँ, करनी ऊँच न होय।सुवरन कलस सुरा भरा, साधू निंदित सोय ।।जैसे हम सभी जानते हैं कि शुक्राचार्य जो दैत्यों के गुरु हैं, वह बृहस्पति जो देवताओं के गुरु हैं उनसे बहुत ज्यादा विद्वान् और बलवान हैं । दोनों ब्राह्मण हैं, पर पूजा बृहस्पति की ही होती है । उनको विष्णु भगवान् के रूप में पूजा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने गुणों को सात्विक कार्यों में लगाया है, न कि शुक्राचार्य की तरह विनाशक तत्वों को बढ़ाने हेतु ।
कुछ लोग कहते हैं कि रावण से बड़े बड़े आज भी कई लोग हैं पर उनको नहीं जलाया जाता । अरे मेरे भोले शूरवीरों, कोई भी कर्म या कार्य छोटा या बड़ा, समय, परिस्थिति, काल, नियम के अनुसार होता है ।जैसे कोई व्यक्ति अगर अपनी शिष्या से सम्बन्ध बनाता है तो उसका पाप बहुत बड़ा है जबकि वही व्यक्ति एक वेश्यालय में जाकर किसी वेश्या से सम्बन्ध बनाता है तो सम्बन्ध बनाने वाली क्रिया एक ही है, पर समय, स्थान, व्यक्ति के कारण उसका प्रारूप बदल गया ।

कोई मंदिर में शराब पिए या संसद में शराब पिए तो गलत माना जाता है, परंतु वह मदिरालय में जाकर पिए तो कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो गलत बोल दे । हाँ शराब पीना जरूर गलत है ।
कोई playground में क्रिकेट खेले तो ठीक है परन्तु वही क्रिकेट वह पार्लियामेंट में या क्लास में या मंदिर में या सिनेमाहाल में खेले तो वह गलत माना जाता है ।इसी तरह ये देखना चाहिए कि रावण किस काल में था, वह युग था त्रेतायुग जहां धर्म परायणता जन-जन में व्याप्त था । किसी को कटु शब्द बोलना ही महापाप की श्रेणी में आता था । किसी का हृदय दुखाना ही बहुत बड़े पाप की श्रेणी में आता था ।उस युग में ऐसा रावण था । उसकी तुलना आज के युग से करना घोर मूर्खता का परिचायक है । आज तो कलियुग में, ऐसे समय में जहां धर्म परायणता किस चिड़िया का नाम है, लोग यही नहीं जानते तो आगे की बात कौन कहे । यहाँ आज धर्म का मतलब बस हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई तक सीमित रह गया है ।

रावण जैसा घोर अधर्मी उस युग में नहीं था और रावण की तुलना करने के लिए रावण जैसी शक्तियाँ भी तो होनी चाहिए । जो जितना बड़ा खूँखार होगा वह उतना ही शक्तिशाली होगा । जो जितनी बड़ी चोरी करता है वह उतना ही दिमागदार होगा । एक बच्चा क्या चुराएगा ? पेंसिल, बॉल बस ? पर एक आईटी और कंप्यूटर में महारत हासिल करने वाला जब अपनी बुद्धि का दुरुपयोग करेगा तो बड़े-बड़े बैंक अकाउंट खाली कर देगा ।
यह ध्यान रखें- हम रावण को इसलिए जलाते हैं क्योंकि वह बुराई और अधर्म का प्रतीक था । हम इसलिए नहीं जलाते कि वह शक्तिशाली था या वह ब्राह्मण था या वह वेदों का ज्ञाता था ।

जब भगवान राम ने लक्ष्मण जी को रावण के पास भेजा तो लक्ष्मण जी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा । भगवान ने कहा कि लक्ष्मण जो अहंकारी रावण था, अब उसका अंत हो गया है, अब मैं तुम्हे उस रावण के पास भेज रहा हूँ जो नीतियों, शास्त्रों, सिद्धांतों का ज्ञाता है । तो शरीर रावण या राम नहीं होता, वह उनके अन्दर के गुणों के कारण उन्हें राम या रावण की संज्ञा मिलती है । इसीलिए भगवान ने रावण के मृत शरीर का दाह संस्कार पूरे विधि-विधान से करवाया । उसके शरीर का अपमान नहीं किया ।
रावण-दहन का उद्देश्य यह शिक्षा देना कि शक्ति का प्रयोग सही दिशा में करो वरना उसी शक्ति के कारण सर्वनाश भी होना निश्चित है । अहंकार सब पापों का मूल है । वह आया तो बुद्धि को गड़बड़ कर देता है, बुद्धि गड़बड़ हुई तो चाक़ू का उपयोग फल काटने की बजाय किसी का गला काटने में होगा ।
जो मूर्ख रावण को महान बताते हैं, वह सीधे-सीधे अपने ही शास्त्रों पर उँगली उठा रहे हैं, वह भगवान राम पर उँगली उठा रहे हैं, वह माता सीता पर उँगली उठा रहे हैं, वह लक्ष्मण जी पर उँगली उठा रहे हैं, वह हनुमान जी पर उँगली उठा रहे हैं, वह वाल्मीकि जी पर उँगली उठा रहे हैं, तुलसीदास से लेकर समस्त महापुरुषों पर उँगली उठा रहे हैं । वह सत्य, धर्म, त्याग, तप, निष्ठा, क्षमा जैसे गुणों पर उँगली उठा रहे हैं ।
इसीलिए अपनी बुद्धि को या आप लोगों ने जो ज्ञान प्राप्त कर रावण को महान बता रहे हैं उसको सही दिशा देने का प्रयत्न करें, गलत दिशा न दें, अन्यथा …….. आगे आप जानते हैं ।
इसी के साथ विजयादशमी की हार्दिक बधाई ।

विजय दशमी/ दशहरा

रावण के विषय में:-
ज्ञानवान होना बहुत ही अच्छी बात है । शक्तिशाली होना भी बहुत ही अच्छी बात है । हर तरह के गुण होना भी बहुत अच्छी बात है, और यह सब विरलों में ही पाया जाता है ।ज्ञान और बुद्धि या विवेक में बहुत बड़ा अंतर है।कोई उस प्रदत्त ज्ञान का किस प्रकार उपयोग करता है या कर रहा है, यही उस व्यक्ति को महान बनाता है l शक्तिशाली होना और उस शक्ति का प्रयोग करना दोनों में जमीन आसमान का अंतर है । ज्ञान का उपयोग या दुरूपयोग व्यक्ति के विवेक या बुद्धि पर निर्भर करता है । जैसे आपके पास बिजली जैसी अद्भुत शक्ति है । बिजली जैसी शक्ति का उपयोग आप AC चलाकर, Fan चलाकर, रोशनी करके प्रयोग करते हैं या उसका प्रयोग आप किसी को करंट लगाकर या नंगे तार को पकड़कर अपने आप को या किसी दूसरे को हानि पहुँचा कर करते हैं यह आप की संस्कृति, संस्कार या सीख पर निर्भर करता है ।

पानी किसी को दिया गया, वह चाहे उसे पीकर अपना लाभ ले या उस पानी का बर्फ बनाकर उसका दूसरी तरह लाभ ले या उसे नाली में गिरा दे । पानी होना बहुत बड़ी बात नहीं है, उसका किस तरह और किस मद में उपयोग किया जा रहा है यह प्रमुख बात है ।
आज नाभिकीय ऊर्जा या आणविक ऊर्जा का प्रयोग आप बिजली उत्पादन और मानव जाति के कल्याण के लिए कर सकते हैं या उससे Nuclear Bomb या Atomic Bomb बना कर दुनिया का सर्वनाश कर सकते हैं ।एक बंदूक जब एक सैनिक के हाथ में जाती है तो उसकी महत्ता बढ़ जाती है पर यही बंदूक जब किसी आतंकवादी के हाथ में जाती है तो वह लोगों की बेहिसाब हत्याएँ करता है । यह कहना कि अरे वाह ! उसके हाथ में बंदूक है वह बहुत ही महान प्राणी है, यह दुर्बुद्धि का प्रतीक है और कुछ नहीं । ऐसे ही अल्पज्ञ और शास्त्रों को न समझने वाले प्राणी आजकल रावण को बहुत महान बता रहे हैं कि वह बहुत ज्ञानी था, वह वेदों का ज्ञाता था, वह अत्यंत बलशाली था, वह ब्राह्मण था इसीलिए उसकी पूजा होनी चाहिए, Bla Bla ऐसा कहने वाले निरा मूर्ख हैं । हाँ, दुबारा सुन लीजिये निरा मूर्ख हैं ।

ज्ञान और शक्तियाँ होना एक आम बात है । उसका उपयोग कौन कैसे कर रहा है, यही उस व्यक्ति को महान या शैतान बना देता है ।पूजनीय वही है जिसके पास शक्ति हो पर उसका प्रयोग वह संसार के या सभी जीवों के हित के लिए कर रहा हो ।शैतान या दानव किसे कहा जाता है ? ऐसा उन्हीं लोगों को कहा जाता है जिनके पास अथाह शक्ति होती है पर वह उसका दुरुपयोग करते हैं, लोगों की हानि करते हैं । रावण ऐसा ही था । वह ब्राह्मण कुल में जन्मा जरूर था पर उसके कार्य सभी दैत्य वाले ही थे । रावण की माता कैकसी एक दानव स्वभाव वाली स्त्री थी । रावण वेदों का ज्ञाता एकमात्र अपने पिता विश्रवा के कारण हुआ । वह अत्यंत शक्तिशाली था परन्तु उसने अपनी शक्तियों का प्रयोग किसके निमित्त किया ? ऋषियों-मुनियों को सताने के हेतु । उसी का प्रश्रय लेकर ताड़का, खरदूषण इत्यादि वनों में रहने वाले ऋषियों के यज्ञ खंडित किया करते थे । उसी का अवलम्ब पाकर मारीच, कालनेमि और अन्य दैत्य लोगों पर अत्याचार करते थे ।

क्या वेद पढने का या उसका ज्ञाता होने की यही सार्थकता है ?
रावण बहुत शक्तिशाली था, पर उस शक्ति का प्रयोग क्या किया उसने ? अपने ही भाई कुबेर से उसकी लंका छीन ली, एक विवाहित स्त्री को बलात् हरण किया, अहंकार और मद में इतना अंधा कि महादेव के निवास कैलाश को ही उठाने का दुस्साहस, बालि को ललकार कर उसका राज्य हड़पने की एक असफल कोशिश, अपने तेज, बल और तपोबल का सहारा लेकर लोगों पर राज करने के उद्देश्य से ब्रह्मास्त्र, चंद्रहास, नागास्त्र इत्यादि दिव्यास्त्रों का संग्रह । अपने लंका में दानवी स्वभाव वाले व्यक्तियों को आश्रय देना । विभीषण जैसे भक्त को लात मारकर बाहर निकालना आदि ।

भले ही कोई बड़े कुल में जन्मा हो, पर अगर उसके कर्म नीच हैं तो वह शूद्र की श्रेणी में ही आएगा । ऐसे ही रावण कितना भी बड़ा वेदपाठी क्यों न हो पर अगर वह कर्म से दानव स्वभाव का है तो वह निंदनीय है ।ऊँचे कुल का जनमियाँ, करनी ऊँच न होय।सुवरन कलस सुरा भरा, साधू निंदित सोय ।।जैसे हम सभी जानते हैं कि शुक्राचार्य जो दैत्यों के गुरु हैं, वह बृहस्पति जो देवताओं के गुरु हैं उनसे बहुत ज्यादा विद्वान् और बलवान हैं । दोनों ब्राह्मण हैं, पर पूजा बृहस्पति की ही होती है । उनको विष्णु भगवान् के रूप में पूजा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने गुणों को सात्विक कार्यों में लगाया है, न कि शुक्राचार्य की तरह विनाशक तत्वों को बढ़ाने हेतु ।
कुछ लोग कहते हैं कि रावण से बड़े बड़े आज भी कई लोग हैं पर उनको नहीं जलाया जाता । अरे मेरे भोले शूरवीरों, कोई भी कर्म या कार्य छोटा या बड़ा, समय, परिस्थिति, काल, नियम के अनुसार होता है ।जैसे कोई व्यक्ति अगर अपनी शिष्या से सम्बन्ध बनाता है तो उसका पाप बहुत बड़ा है जबकि वही व्यक्ति एक वेश्यालय में जाकर किसी वेश्या से सम्बन्ध बनाता है तो सम्बन्ध बनाने वाली क्रिया एक ही है, पर समय, स्थान, व्यक्ति के कारण उसका प्रारूप बदल गया ।

कोई मंदिर में शराब पिए या संसद में शराब पिए तो गलत माना जाता है, परंतु वह मदिरालय में जाकर पिए तो कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जो गलत बोल दे । हाँ शराब पीना जरूर गलत है ।
कोई playground में क्रिकेट खेले तो ठीक है परन्तु वही क्रिकेट वह पार्लियामेंट में या क्लास में या मंदिर में या सिनेमाहाल में खेले तो वह गलत माना जाता है ।इसी तरह ये देखना चाहिए कि रावण किस काल में था, वह युग था त्रेतायुग जहां धर्म परायणता जन-जन में व्याप्त था । किसी को कटु शब्द बोलना ही महापाप की श्रेणी में आता था । किसी का हृदय दुखाना ही बहुत बड़े पाप की श्रेणी में आता था ।उस युग में ऐसा रावण था । उसकी तुलना आज के युग से करना घोर मूर्खता का परिचायक है । आज तो कलियुग में, ऐसे समय में जहां धर्म परायणता किस चिड़िया का नाम है, लोग यही नहीं जानते तो आगे की बात कौन कहे । यहाँ आज धर्म का मतलब बस हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई तक सीमित रह गया है ।

रावण जैसा घोर अधर्मी उस युग में नहीं था और रावण की तुलना करने के लिए रावण जैसी शक्तियाँ भी तो होनी चाहिए । जो जितना बड़ा खूँखार होगा वह उतना ही शक्तिशाली होगा । जो जितनी बड़ी चोरी करता है वह उतना ही दिमागदार होगा । एक बच्चा क्या चुराएगा ? पेंसिल, बॉल बस ? पर एक आईटी और कंप्यूटर में महारत हासिल करने वाला जब अपनी बुद्धि का दुरुपयोग करेगा तो बड़े-बड़े बैंक अकाउंट खाली कर देगा ।
यह ध्यान रखें- हम रावण को इसलिए जलाते हैं क्योंकि वह बुराई और अधर्म का प्रतीक था । हम इसलिए नहीं जलाते कि वह शक्तिशाली था या वह ब्राह्मण था या वह वेदों का ज्ञाता था ।

जब भगवान राम ने लक्ष्मण जी को रावण के पास भेजा तो लक्ष्मण जी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा । भगवान ने कहा कि लक्ष्मण जो अहंकारी रावण था, अब उसका अंत हो गया है, अब मैं तुम्हे उस रावण के पास भेज रहा हूँ जो नीतियों, शास्त्रों, सिद्धांतों का ज्ञाता है । तो शरीर रावण या राम नहीं होता, वह उनके अन्दर के गुणों के कारण उन्हें राम या रावण की संज्ञा मिलती है । इसीलिए भगवान ने रावण के मृत शरीर का दाह संस्कार पूरे विधि-विधान से करवाया । उसके शरीर का अपमान नहीं किया ।
रावण-दहन का उद्देश्य यह शिक्षा देना कि शक्ति का प्रयोग सही दिशा में करो वरना उसी शक्ति के कारण सर्वनाश भी होना निश्चित है । अहंकार सब पापों का मूल है । वह आया तो बुद्धि को गड़बड़ कर देता है, बुद्धि गड़बड़ हुई तो चाक़ू का उपयोग फल काटने की बजाय किसी का गला काटने में होगा ।
जो मूर्ख रावण को महान बताते हैं, वह सीधे-सीधे अपने ही शास्त्रों पर उँगली उठा रहे हैं, वह भगवान राम पर उँगली उठा रहे हैं, वह माता सीता पर उँगली उठा रहे हैं, वह लक्ष्मण जी पर उँगली उठा रहे हैं, वह हनुमान जी पर उँगली उठा रहे हैं, वह वाल्मीकि जी पर उँगली उठा रहे हैं, तुलसीदास से लेकर समस्त महापुरुषों पर उँगली उठा रहे हैं । वह सत्य, धर्म, त्याग, तप, निष्ठा, क्षमा जैसे गुणों पर उँगली उठा रहे हैं ।
इसीलिए अपनी बुद्धि को या आप लोगों ने जो ज्ञान प्राप्त कर रावण को महान बता रहे हैं उसको सही दिशा देने का प्रयत्न करें, गलत दिशा न दें, अन्यथा …….. आगे आप जानते हैं ।
इसी के साथ विजयादशमी की हार्दिक बधाई ।