भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

हमारा परिचय

श्वेत प्रेम रस (SPR) एक लाभ निरपेक्ष, धर्मार्थ, शैक्षिक एवं आध्यात्मिक संस्था है। यह आध्यात्मिक संस्था विश्व के समस्त भगवदीय दर्शनों के समन्वयक सिद्धांतों से जन-जन में व्याप्त गलत सिद्धांतों को बाहर निकालने एवं मोह से ग्रसित जीवों की दुःख निवृत्ति कराने के लिए प्रतिबद्ध है । जीवों को सही सिद्धांत एवं भगवदीय तत्वज्ञान कराकर उनकी दुःख निवृत्ति और आनंद प्राप्ति करवाना ही इस आध्यात्मिक संस्था का मूल उद्देश्य है ।

आज समस्त विश्व में अशांति व्याप्त है और लोग शारीरिक और मानसिक रोगों से ग्रस्त होकर अपना जीवन दुःखमय एवं अंधकारमय बना रहे हैं।
इस स्थिति से त्राण पाने हेतु एवं संसार में रहते हुए कैसे सुखी बनें और अपने अंदर आध्यात्मिक शक्ति का विकास करने के लिए समय समय पर आध्यात्मिक साधना समारोह का आयोजन किया जाता है जिसमे निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर कार्य किया जाता है
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धर्म और आध्यात्म का विवेचन।

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ध्यान की समस्त प्रक्रियाओं और विधियों से परिचय ।

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अवसाद से कैसे मुक्ति पायें।

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एकाग्रता कैसे बढ़ायें।

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संसार में रहते हुए भगवदीय साधना कैसे करें और अपने लक्ष्य को कैसे प्राप्त करें।

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मन को कैसे नियंत्रित करें।

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मन को हर अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में कैसे प्रसन्न या सम अवस्था में रखें ।

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पुराणों में वर्णित विभिन्न कथाओं एवं सिद्धांतों का वैज्ञानिक एवं तर्क पूर्ण विवेचन।

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तन और मन को स्वस्थ्य कैसे रखें।

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प्रश्नोत्तरी सत्र

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सांस्कृतिक कार्यक्रम

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धर्म और आध्यात्म का विवेचन।

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ध्यान की समस्त प्रक्रियाओं और विधियों से परिचय ।

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अवसाद से कैसे मुक्ति पायें।

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एकाग्रता कैसे बढ़ायें।

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संसार में रहते हुए भगवदीय साधना कैसे करें और अपने लक्ष्य को कैसे प्राप्त करें।

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मन को कैसे नियंत्रित करें।

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मन की शक्ति को कैसे बढ़ायें।

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मन को हर अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में कैसे प्रसन्न या सम अवस्था में रखें ।

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पुराणों में वर्णित विभिन्न कथाओं एवं सिद्धांतों का वैज्ञानिक एवं तर्क पूर्ण विवेचन।

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तन और मन को स्वस्थ्य कैसे रखें।

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प्रश्नोत्तरी सत्र

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सांस्कृतिक कार्यक्रम

युवा वर्ग के लिए यह समारोह अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि वह भविष्य हैं और भविष्य रचयिता भी।
अतः अधिक से अधिक लोग हमारे यहां आयोजित किए जाने वाले साधना समारोह में भाग लेकर इस आध्यात्मिक चेतना का लाभ लीजिये एवं अपना सम्पूर्ण विकास करने के साथ-साथ समाज को भी योगदान करें।

कुमति कीन्ह सब विश्व दु:खारी ।
गलत मार्गों, गलत कर्मों और भ्रममूलक सिद्धांतों के कारण यहाँ समस्त जीव दुःखों के बोझ से पीड़ित हैं ।
प्रत्येक जीव दैहिक, दैविक और भौतिक तापों और कष्टों से दुःख पा रहा है ।
इस विश्व के शत प्रतिशत दुःखों का कारण एकमात्र स्वयं जीव और उसके कर्म हैं । आज विश्व में सभी जीवों के दुःख का 80 प्रतिशत भाग एकमात्र उनका मन है जिसके कारण वह दुःख भोगता है ।

मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः ।

काहु न कोउ सुख दुःख कर दाता ।
निज कृत कर्म भोग सब भ्राता ।।

आज संसार में अनेक कल्पित मत, धर्म, सम्प्रदाय, मठ और विचारधारा चल पड़े हैं जिसके कारण अनेक दुःखों से ग्रसित जीव इन सब की ओर आकर्षित होते हैं एवं पुनः और दुःखों के भँवर में फँसकर अपना इहलोक तो नष्ट करते ही हैं साथ ही साथ अपना परलोक भी नष्ट कर लेते हैं ।

हमारी यह आध्यात्मिक संस्था समस्त वेदों, शास्त्रों, उपनिषदों, पुराणों एवं अन्य धर्म ग्रंथों के सार भूत तत्वों को ग्रहण कर, उसका सही-सही तथ्य समझाकर भगवदानुग्राही जीवों को श्रेय मार्ग या भगवद्मार्ग या आनंद मार्ग या परम शान्ति का मार्ग प्रशस्त करती है ।
भगवद् भक्ति के गूढ़ सूत्रों द्वारा मलिन, कलुषित एवं भ्रमित विचारधाराओं को नष्ट करके, कलियुग के अनुरूप सही-सही साधना प्रतिपादित कर भगवद्प्राप्ति के मार्ग पर जीवों के परम लक्ष्य को सफल करती है ।
वेद, पुराण, उपनिषद आदि शास्त्रों के गूढ़ सिद्धांतों और रहस्यों के सार को अत्यंत सरल शब्दों में एवं वर्तमान समयानुकूल जनमानस की गति-मति के अनुसार आम जन-जीवन को भक्तिमार्ग से जोड़ने का काम करती है ।

परमानंदकंद भगवान श्री राधाकृष्ण की प्रेममयी भक्ति के द्वारा सभी जीवों के अंदर प्रेममय व्यक्तित्व का विकास करते हुए, हृदय से प्रेम के सागर में डुबाते हुए; आम जन-जीवों को प्रेममयी भक्ति एवं आनंद प्रदान करना ही इस संस्था का मूल उद्देश्य है ।

रामहिं केवल प्रेम पियारा ।
जानि लेहुँ सोइ जाननिहारा ।।
“भगवान केवल और केवल शुद्ध प्रेम एवं भक्ति से ही प्राप्य हैं ।” इस सिद्धांत को अपनी संस्था का सार मानते हुए, समस्त जीवों के हृदय में भगवद् प्रेम का उदय कराते हुए, उन्हें भगवद् प्रेम से सराबोर करने का लक्ष्य लेकर यह संस्था निरंतर बढ़ रही है ।
भगवान का परम प्रेम, परमानंद एवं उनकी ही प्रेममयी सेवा का लक्ष्य लिए हुए यह संस्था निरन्तर गतिमान है ।

यह संस्था भक्ति अवगाहित सभी संतों-महापुरुषों, भक्तों आदि के सिद्धांतों का समन्वय करते हुए, भौतिकवाद मायाजनित दुःख से पीड़ित एवं अज्ञान से भटके जीवों को भगवद् क्षेत्र में प्रोत्साहित करके पूर्ण दुःख निवृत्ति का सेवा कार्य करती है ।

संस्था ऐसे लोगो को निरंतर जाग्रत कर रही है जो भगवान को जानना चाहते हैं, उनको पाना चाहते हैं परंतु भौतिकवाद में उलझे हैं । अनेकों स्थान पर प्रचलित ऐसी प्रथाओं में फसे हैं जो सिर्फ कथाओं और कहानी तक सीमित हैं, जो सिर्फ उतने समय तक अच्छी लगती हैं जितने समय तक सुनो । बिना सिद्धांतो के, बिना तत्वज्ञान के देर-सवेर वही मानव जो आस्तिक था, आस्तिक से नास्तिक बन जाता है । पहले तो भगवान को बहुत मानता था परंतु दु:ख के पहाड़ टूटने पर उसका विश्वास भगवान से उठ जाता है । हमारी संस्था प्राथमिक रूप से भटके हुए सभी मानवों, युवा, ज्ञान पिपासु जनों को सही सिद्धांतों से अवगत कराकर तत्वज्ञानी बनाती है ।

आज का युवा भौतिकवाद के बाहुल्यता में भटक कर अपने सनातन धर्म से बहुत दूर हो गया है और अनेकों दुर्व्यस्नों में फंस कर अपना अमूल्य मानव जन्म गवां रहा है । हमारी संस्था ऐसे ही भटके हुए मनुष्यों को मानव जीवन का उद्देश्य समझाती है और श्वेत प्रेम रस से सराबोर करती है ।

संस्था समय-समय पर, भिन्न-भिन्न स्थानों पर रसमय सत्संग शिविरों का आयोजन करती है जहाँ माया में फंसे लोगों के सभी प्रश्नों का उत्तर शास्त्र सम्मत सिद्धांतों से दिया जाता है और उनको तत्वज्ञान से अवगत कराकर श्वेत प्रेम रस, भगवद् प्रेम रस में भीगना सिखाया जाता है ।

भगवान क्या हैं, सत्य मार्ग क्या है, मनुष्य का लक्ष्य क्या है, उस लक्ष्य को कैसे पाया जाय ? इन सभी बातों को समझाकर संसार में रहते हुए जीव कैसे भगवद्प्राप्ति कर सकता है और कैसे अपने अमूल्य मानव जन्म का कल्याण कर सकता है; ऐसे सभी भगवद् चर्चा द्वारा मानव को जगाने का दैवीय कार्य संस्था द्वारा सतत जारी है ।

सोइ जानहिं जेहिं देहुँ जनाई ।
जानत तुमहिं तुमहिं होइ जाई ।।
भगवान कृष्ण को भगवान कृष्ण ही जान सकते हैं अर्थात जब मन और बुद्धि का समर्पण भगवान कृष्ण में करके उसे कृष्णमय बना दिया जाएगा तब ।
जिनका दिन-रात सुरा सुंदरी में व्यतीत होता हो, वह अपनी लौकिक बुद्धि से भगवान कृष्ण और गोपियों को एक साधारण लौकिक पुरुष और नारी के रूप में ही देखेंगे । जैसे- एक शराबी अगर समुद्र भी देखेगा तो उसके मन में होगा कि काश! इतना बड़ा शराब का समुद्र होता ।
एक छोटे बच्चे की तरह अपने छोटे-छोटे हाथ उठाकर हिमालय की ऊँचाई और पृथ्वी का व्यास बता रहा हो !

और धन्य हैं सनातन धर्म से सम्बन्ध रखने वाले ऐसे लोग, धिक्कार है उन पर और उनके माँ-बाप पर जो ऐसे लोगों का समर्थन करते हैं जो सनातन धर्म के ऐसे व्यक्तित्व और सत्ता पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं जिसके बिना सनातन धर्म की परिकल्पना असंभव है ।

मैं चैलेंज करता हूँ कि एक बार राम और कृष्ण तत्व में डूब कर तो देखो, उसे अनुभव करके तो देखो, सब कुछ भूल न जाओ तो कहना । विज्ञान से परे अलौकिक ज्ञान है जहाँ सभी ज्ञान surrender हो जाता है, जिसके जानने के पश्चात कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता ।

वास्तवी लीला स्वसंवेद्य है- उसे भगवान और उनके रसिक भक्तजन ही जानते हैं । जीवों के सामने जो लीला होती है वह व्याव्हारिकी लीला है । वास्तवी लीला के बिना व्याव्हारिकी लीला नहीं हो सकती परन्तु व्याव्हारिकी लीला का वास्तविक लीला के राज्य में कभी प्रवेश नहीं हो सकता ।
“येइ कृष्ण-तत्व वेत्ता, सेइ गुरु हय:।” कोइ भी जो कृष्ण को जानता है, वह गुरु है । कृष्ण को कौन जान सकता है- स्वयं कृष्ण, कृष्ण को कौन सुन सकता है- स्वयं कृष्ण, कृष्ण को कौन देख सकता है- स्वयं कृष्ण ।

ज्ञान किसी अनुभव प्राप्त सद्गुरु द्वारा सिखाए जाने से ही जीवन में उतरता है । सद्गुरु धीरे-धीरे संसार के भटके हुए प्राणियों को कभी प्रेम से समझाकर तो कभी हक से तो कभी गुस्सा करके तत्वज्ञान में जाग्रत करते हैं जिसके लिए वो हमारे मध्य अतिशय मधुर प्रेमयुक्त भी बनते हैं तो कभी क्रोध या गुस्सा करके हमें अध्यात्म मार्ग में आगे बढ़ना सिखाते हैं जिससे हमारा अमूल्य समय और मानव जीवन व्यर्थ न जाने पाए ।