भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

इस संसार में और संसार के किसी भी तत्व में न सुख है न दुःख है । सुख दुख सब मन द्वारा निवेशित है प्रत्येक तत्व में ।
इसीलिए शंकराचार्य जी ने कहा सत्यं ब्रह्म जगत मिथ्या । मिथ्या का अर्थ लोग कुछ और ही कर देते हैं और फिर सिद्धान्त से भटक जाते हैं ।
इस संसार में जो कुछ भी दिख रहा है या आभास हो रहा है सब मन द्वारा बनाया गया है ।
मनमेव हि संसारः ।
यह सम्पूर्ण संसार ( स्त्री, माँ, बाप, भाई, बेटा, पति या कोई भी वस्तु या तत्व ) सब कुछ मन द्वारा निर्मित है । सुख दुःख से लेकर संसार के सभी तत्व मन द्वारा निर्मित हैं ।

एक आदमी था । उसके बग़ल में एक 22 वर्ष का युवक बैठा था । कुछ बात में कहा सुनी हुई और नौबत मार पिटाई तक आ जाती है । दोनों एक दूसरे के शत्रु । अब अचानक से उसे किसी तरह पता लगता है कि यह युवक उसका बेटा है जो बचपन में खो गया था ।
मन ने जैसे ही निश्चय किया कि अमुक व्यक्ति मेरा बेटा है और ये मेरे पिता हैं, तुरंत ही शत्रुता प्रेम में परिवर्तित हो गयी । जो अभी एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे, वह गले मिलकर आँसू बहाकर सुख का अनुभव कर रहे हैं ।

मन ने ही गौतम को निश्चय करवाया कि इस स्त्री में कुछ नहीं रखा, न ही इस बालक में, अंत समय कोई साथ नहीं देगा और तुम्हें स्वयं अपना उद्धार करना होगा, तुरंत ही वह महात्मा बुद्ध हो गए ।

राजा भर्तृहरि को मन ने ही निश्चय करवाया कि इस मल मूत्र के पिटारे में कुछ नहीं रखा, सब धोखा है, मन के कारण ही वह योगीराज बन गए ।

सब कुछ मन । आज जो कुछ लोग कर रहे हैं, बस मन के बहकावे में कर रहे हैं । मन ने बोला यह सही है, तुरंत उस कार्य को किया जाता है । इसी मन के कारण लोग चोरी, चमारी, डकैती, भ्रष्टाचार, पापाचार करते हैं और इसी मन के कारण विरक्त, भक्त, भगवदप्राप्त संत तक हो जाते हैं ।

बिना मन या बुद्धि की आज्ञा के कोई भी जीव कोई कर्म नहीं कर सकता ।
एक बात और :- इस संसार में कोई भी जीव गलत कार्य नहीं करता । हम्म ! खा गए न गच्चा !
कोई भी जीव कोई भी कार्य तब तक नहीं करता जब तक मन उसे यह न समझा दे कि यह अमुक कार्य सही है ।

एक बलात्कारी तब तक बलात्कार नहीं करेगा जब तक उसका मन यह नहीं समझायेगा कि अरे कुछ नहीं होगा बलात्कार से, किसी को नहीं पता लगेगा और तुम्हे सुख भी मिल जाएगा । मतलब यह कार्य तुम्हारे लिए सही है ।

कोई भी व्यक्ति तब तक किसी की हत्या नहीं करेगा जब तक उसका मन उसे यह नहीं निश्चय कराएगा कि अमुक व्यक्ति की हत्या करना तुम्हारे लिए फायदेमंद होगा और यह तुम्हारे लिए सही है । कोई भी व्यक्ति तभी आत्महत्या करेगा जब तक उसे उसका मन यह विश्वास न दिला दे कि आत्महत्या करने से तुम्हारे सब दुःख खत्म हो जाएंगे और यह तुम्हारे लिए सही है ।

इसीलिए मन को शास्त्रों द्वारा, महापुरुषों के वचनों द्वारा, अच्छी पुस्तकों द्वारा, अच्छे विचारों की संगति द्वारा, सतोगुणी प्रधान बुद्धि वाले व्यक्ति के सामीप्य द्वारा उसको ढाला जाता है, treatment दिया जाता है कि मन सही decision और सही गलत के निर्णय को सही से ले सके । इसीलिए मन को ही बन्धन और मोक्ष का कारण माना गया है ।
अतः मन का ही शोधन करना है, मन को साधने की साधना करनी है, तभी कल्याण सम्भव है अन्यथा तो इसी मन के कारण अनंत जन्म, अनंत योनियों में जाकर हमने अनंत दुःख भोगे हैं और भोगेंगे ।
जिसने मन को ठीक कर लिया या साधना द्वारा दिव्य कर लिया बस उसका काम बन गया ।

सुख दु:ख का आभास

सुख दु:ख का आभास

मन को यह आभास एकमात्र अज्ञान के कारण होता है । गलत ज्ञान होना ,यही समस्त दुखों का कारण है । कुमति कीन्हि सब विश्व दुःखारी । एकमात्र गलत मति के कारण , अज्ञान के कारण यह सम्पूर्ण चराचर दुःखी है । हमने या हमारे मन ने जिस में सुख दुख माना होता है , वही हमें सुख और दुख...

When You Feel Low

When You Feel Low

सिर दर्द हो, थकान हो, शरीर से लेकर मन में शिथिलता हो, मन बहुत ही व्यग्र हो, आपको शांति चाहिए हो, तब एक काम कीजियेगा । अपने आस-पास कोई पुराना वृक्ष ढूँढिये । पीपल, आम, बरगद, नीम या कोई भी । पीपल या बरगद हो तो और भी अच्छा । लेकिन यह ध्यान रखिएगा कि पुराना हो । पुराना न...

Joy Amidst Discontent

Joy Amidst Discontent

प्रश्न- सब सुख सुविधा होने पर भी हम दुखी क्यों हैं ? उत्तर- ज्यों ज्यों हम प्रकृति से दूर होते गये, त्यों त्यों अशांति, तरह तरह की व्याधियों के चपेट में आते गये l मन के साथ साथ तन भी अशांत होता चला गया lज्यों ज्यों आधुनिक होते गये त्यों त्यों हम प्रकृति की निश्चल ममता...