प्रश्न- आध्यात्मिकता क्या है ? ऐसा कौन सा मार्ग है जिसपर चलकर जीवन आनंदमय हो सकता है ?
उत्तर–
आध्यात्मिकता का अर्थ है आत्मा सम्बन्धी विषय को प्राप्त करना। जो आत्मिक आनंद से सम्बंधित तत्त्व है, उसे प्राप्त करना।
चूँकि हम सब अज्ञान से मोहित होकर स्वयं को शरीर मान लेते हैं, इसी हेतु इस शरीर की तुष्टि के लिए हम जगह-जगह भटकते हैं और आनंद ढूँढते हैं।
हम आनंद क्यों ढूँढते हैं ?
ईश्वर अंश जीव अविनाशी।
चेतन अमल सहज सुख राशी।।
क्योंकि हम उस सत चित्त आनंद के अंश हैं और अंशी स्वभावतः अपने अंश को ही चाहेगा। नदियाँ सदैव समुद्र से मिलना चाहती हैं। लेकिन हम स्वयं को शरीर मानकर इन्द्रियों की तुष्टि में लग जाते हैं। चूँकि इन्द्रियाँ जड़ हैं, इसलिए इन्द्रियों द्वारा ग्रहण किया हुआ लौकिक आनंद क्षणिक होता है।
अस्तु आनंद संसार में है ही नहीं क्योंकिं संसार माया जनित और जड़ है। लेकिन हम उसी में आनंदाभास करके प्रसन्न होते रहते हैं।
इसलिए हम कभी स्त्री, कभी पति, कभी बेटा, कभी माँ, कभी पिता, कभी मित्र, पैसा, शराब, गाड़ी, बंगला, मोबाइल, लैपटॉप, जमीन, movie इत्यादि में इसकी खोज कर-कर के खत्म हो जाते हैं लेकिन आनंद कहीं भी और कभी भी नहीं मिल पाता।
जिस प्रकार सूअर को विष्ठा में आनंद आता है, ठीक उसी प्रकार गाय को हरी घास में, आम व्यक्ति को रसगुल्ले में, शराबी को शराब में, कामी को वेश्या में, चींटी को मरे हुए कीड़े में आता है। लेकिन आनंद शरीर का विषय नहीं है। आनंद मन का विषय है, आत्मा का विषय है। इसलिए मन के द्वारा हम तरह-तरह की वस्तुयें और व्यक्तियों में आनंद ढूँढने का प्रयास करते हैं।
लेकिन जब इनमें आनंद नहीं मिलता तो हमें दुःख होता है।
इसी दुःख की निवृत्ति के लिए यह जीव अनंतानंत जन्मों से और निरन्तर भटक रहा है।
जिस प्रकार बचपन से यह मस्तिष्क में ठूस-ठूस कर भरा गया है कि आनंद admission लेने में है, यह कक्षा पास करने में है, प्रथम आने में है, competition क्रैक करने में है, नौकरी लगने में है, पैसा कमाने में है, विवाह करने में है, बच्चे पैदा करने में है, अच्छा खाना, पहनना, गाड़ी, सुख-साधन इत्यादि में है।
बस ठीक उसी प्रकार यह सत्य सिद्धांत मस्तिष्क में डालना ही कि आनंद संसार में नहीं है बल्कि आत्मा परक विषयों में और भगवान में ही है जिसको हमें प्राप्त करना है, आध्यात्मिकता है।
यह आध्यात्मिकता कैसे आएगी ?
यह आएगी सही-सही ज्ञान प्राप्त करके, सही-सही सिद्धांत को मन-मस्तिष्क में बिठाकर। यह सही-सही सिद्धांत कौन बताएगा और कौन मन-मस्तिष्क में बिठायेगा ?
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
महापुरुष और संतों के संसर्ग से ही उस तत्व का ज्ञान होगा और जिसको प्राप्त करने के पश्चात कुछ भी प्राप्त करना शेष नहीं रह जाता है।
इसी ज्ञान के पश्चात आधिदैविक, आधिभौतिक व आधिदैहिक तापों से मुक्ति मिलेगी और जीव सदा-सदा के लिए परम आनंद को प्राप्त कर आनंदमय हो जाएगा।
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