भज गोविंदं भज गोविंदं
गोविंदं भज मूढ़मते।

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गोविंदं भज मूढ़मते।

Who Are We?

श्वेत प्रेम रस (SPR) एक लाभ निरपेक्ष, धर्मार्थ, शैक्षिक एवं आध्यात्मिक संस्था है। यह आध्यात्मिक संस्था विश्व के समस्त भगवदीय दर्शनों के समन्वयक सिद्धांतों से जन-जन में व्याप्त गलत सिद्धांतों को बाहर निकालने एवं मोह से ग्रसित जीवों की दुःख निवृत्ति कराने के लिए प्रतिबद्ध है ।

Shwet Gyan (महत्वपूर्ण लेख)

(महत्वपूर्ण लेख)

मन के विषय में

इस संसार में और संसार के किसी भी तत्व में न सुख है न दुःख है । सुख दुख सब मन द्वारा निवेशित है प्रत्येक तत्व में ।
इसीलिए शंकराचार्य जी ने कहा सत्यं ब्रह्म जगत मिथ्या । मिथ्या का अर्थ लोग कुछ और ही कर देते हैं और फिर सिद्धान्त से भटक जाते हैं ।

अध्यात्म के विषय में

दरिद्र कौन है ?
अगर आपके जीवन में सब कुछ है, धन है, हर प्रकार के भोग, सुख-सुविधा तथा साधन हैं, लेकिन अध्यात्म नहीं है, तो आप दरिद्र हैं। ये आप संसार के जितने भोग-विलास या सुख के साधन देख रहे हैं, सब एक क्षण के अंदर समाप्त हो जायेंगे। और यह अध्यात्म की दरिद्रता समस्त दुःखों की जननी है।

मंदिर का अर्थ

वह सर्वत्र समान रूप से व्याप्त है। ऐसा नहीं है कि उनकी शक्तियाँ या वह कहीं कम, कहीं ज्यादा व्याप्त है। जो भगवान कुत्ते में व्याप्त हैं, वही भगवान समान रूप से हाथी में, चीटीं में, पापी में, पुण्यात्मा में, मन्दिर के देवालय में और वही भगवान मल-मूत्र के कण-कण में भी व्याप्त हैं।

Shwet Ras (पद रचनाएं)

Shwet Ras (पद रचनाएं)

” दीखै री सखि , चहुँदिशि मोहें नीलाभ “

दीखै री सखि , चहुँदिशि मोहें नीलाभ !
शीश मुकुट कर मुरली सुशोभित , पहिने रे पीताभ !
नीलकमल सों अँखियाँ जिनकी , तिरछी भौंह कृष्णाभ !
मधुर मधुर मुसकनि नित जिनकी , दन्त सुघर श्वेताभ !

” मन मूरख अब तो मान रे “

मन मूरख अब तो मान रे !
देह क्रिया ते कबहुँ न मिलिहैं , मन के श्री भगवान्
रे !
चार धाम पद यात्रा कर चंह , लख कर गंग स्नान रे !
करहु करोरन योग यज्ञ अरु , धर्म को लै नुष्ठान रे !

“अलि तू काहें सब कलि दास “

अलि तू काहें सब कलि दास ?
इत उत भटकत नित सुमनन पर , लै अंतरि मधु आस !
भटकत भ्रमत भ्रमर कलि कलि पर , कीन्हों विविध प्रयास !

Shwet Discourses

(साधक प्रश्नोत्तरी)

मनुष्य का जन्म भाग्य से मिलता है या भगवान की कृपा से ?

मनुष्य का जन्म भगवान की कृपा से ही मिलता है । आप सभी को समझना होगा कि कृपा किसे कहते हैं ?
हमारे अनंत जन्मों के पाप और पुण्य कर्मों में से, प्रारब्ध में से भगवान ने कृपा करके हमें बुद्धि प्रधान मनुष्य देह देह दिया; यह सबसे बड़ी कृपा है भगवान की ।
कबहुँक करि करुणा नर देहि ।
देत ईश बिनु परम सनेही ।।

हमारे साथ जो कुछ भी होता है वह सब भगवान की इच्छा से होता है या जो कुछ भी हमारे आस-पास घट रहा है वह सब पहले से सुनियोजित होता है ?

उत्तर- भगवान एकमात्र कर्म करने की शक्ति प्रदान करते हैं । उस शक्ति को प्राप्त कर हम क्या करते हैं, यह हमारे ऊपर निर्भर करता है l जैसे- Powerhouse से बिजली मिल गयी है । अब हम उससे AC चलायें, कूलर, TV, fridge या हीटर जो चलाना हो चलायें और उसकी नंगी तारों को पकड़कर हम 0/100 भी हो सकते हैं । इसमें हम बिजली या powerhouse को दोष दें कि उसने ऐसा क्यों किया, तो यह हमारी अज्ञानता और ढीठता है ।

 

Shwet Publication

राधा तत्व पुस्तक

राधा तत्व पुस्तक अपने पाठकों को एक गहरे आध्यात्मिक सफर पर लेती है, जहाँ प्रेम और दिव्यता के माध्यम से मानव जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को समझाने का प्रयास किया गया है। इस किताब के माध्यम से, पाठक राधा के प्रेम के रहस्यमय जगत में डूबकर आत्मा के आध्यात्मिक आदर्शों को सीख सकते हैं।

Shwet Quotes

Upcoming Shwet Event

Janmashtami Mahotsav

Date : 24-08-2024 to 26-08-2024

Place : Ahmedabad – Gujarat

Roop Dhyan , Sankritan & Satsang

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Words of Devotees

भगवान को जानने की इच्छा प्रारंभ से ही थी मगर जो भी मिलता अपने मन के अनुसार भगवान की परिभाषा बता कर चला जाता । समझ आया कि वास्तविक भक्ति क्या है, भक्ति तो इंद्रियों अर्थात आँख, नाक, कान, त्वचा, रसना का विषय है ही नहीं। भक्ति तो सिर्फ और सिर्फ मन का विषय है।

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आशुतोष सिंह (अध्यापक – आगरा, उत्तर प्रदेश)

बहुत कुछ जानने को और समझने को मिला हमें घर बैठे, बहुत सारी गलत धारणाएं टूटी, अंधविश्वास दूर हुए, सनातन धर्म के सभी तीज-त्योहारों, मान्यताओं, भगवान की लीला, नाम, रूप, गुण, धाम, संत-महापुरुषों के बारे में, उनके पद भजन, हरि-गुरु सभी के बारे में इतना कुछ मिला कि जिसकी मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था।

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हर्षद वशिष्ठ (CA - पलवल, हरियाणा)

भगवान तो केवल प्रेम का विषय हैं, वह सिर्फ प्रेम ही देते हैं कभी दंड नहीं देते। गुरुजी के इस सिद्धांत से मुझे अपने भगवान से अथाह प्रेम होने लगा और डर लगना बन्द हो गया, पूजा-पाठ से जुड़े अनेक भ्रम भी दूर हो गए। यह भी समझ आ गया कि भगवान सिर्फ भाव से ही मिल जाते हैं, उनको हमारे रुपये-पैसे की आवश्यकता नहीं है।

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सोनम कटियार(अध्यापक – कानपुर, उत्तर प्रदेश)

अब तक जिस कर्मकाण्ड में फंसे हुए थे, उनसे धीरे-धीरे बाहर निकलने लगे। जीवन को जीने का तरीका समझ में आने लगा। अब तक सिर्फ माला फेरना और मंदिर जाने को ही भक्ति समझ रहे थे लेकिन भैयाजी से मिलकर भक्ति का असली मतलब जाना। भैया जी ने भक्ति को बिल्कुल सहज बना दिया, बिना किसी डर के भक्ति करना सिखा दिया।

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योगेश कुमार गर्ग (भरतपुर, राजस्थान)

अब उनके नाम, रूप, गुण, लीला में जो रस मिलने लगा है, उसका वर्णन शब्दों में तो नहीं किया जा सकता, उसको सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। कोई सही-सही तत्वज्ञान और प्रभु प्रेम का रस चखना चाहता है तो विश्वास कीजिए आप बिल्कुल सही जगह हैं।

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हिमांशु चौहान (अध्यापक - अमरोहा, उत्तर प्रदेश)

एक-एक करके सारे प्रश्नों के उत्तर मिलते गए। पूजा का मतलब समझ में आया, भाव कितने जरूरी है यह समझ में आ गया l प्रभु से प्रेम करना, प्रिया-प्रियतम के लिए रोना, रोने में कितना सुख और आनंद है यह सब गुरुवर से जाना ।

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मयूरी शर्मा (आसनसोल, पश्चिम बंगाल)

अध्यात्म दर्शन’ समूह में मेरे सभी प्रश्नों के जवाब भईया जी के द्वारा मिले और दिमाग पर जमी हुई धूल भी झड़ गई। वृंदावन शिविर में मैंने जाना कि भगवान डरने के लिए नहीं बल्कि प्रेम करने लिए हैं, उनसे प्रेम करना है मन से। जहाँ-जहाँ मन जाए वहाँ-वहाँ श्रीकृष्ण को खड़ा कर दीजिए, सब कुछ आसान हो जाएगा और हुआ भी है।

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वर्षा भदौरिया (सिरोही, राजस्थान)

घर का वातावरण आध्यात्मिक रहा है लेकिन अध्यात्म का सही अर्थ परम आदरणीय श्री श्वेताभ पाठक भैया जी के सान्निध्य में आकर ज्ञात हुआ। इन साधना शिविरों के द्वारा हम क्रियात्मक साधना कर सकते हैं, शिविर के माध्यम से हम अपनी साधना को बढ़ा सकते हैं। सभी को शिविर में जरूर पहुँचना चाहिए क्योंकि हम जैसे सांसारिक व्यक्तियों के लिए साधना को बढ़ाने का यही एकमात्र उपाय है।

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चेतना शर्मा (दिल्ली)

भक्ति-भाव, पूजा, बचपन से ही परम्परागत रूप से व्यवहार में थी परंतु विश्वास में कमी थी। श्री गुरुदेव श्वेताभ पाठक जी के सान्निध्य में आने के बाद वह पूरी हो गई। इनके लेख सीधा दिल को चीरते हुए निकलते थे। ऐसा लगता था यही तो मैं सोचता हूँ, ऐसा ही तो मैं हूँ।

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चंद्रशेखर पाठक (बैंकर – जयपुर, राजस्थान)

ईश्वर की तस्वीरें पहले निर्जीव सी लगती थीं परंतु अब सजीव लगने लगी है; ऐसा लगता है कि वह मुझे देख कर मुस्कुरा रहे हैं । ईश्वर का आभास अपने आस-पास होने लगा है, ‘भाव’ का अर्थ समझ आने लगा है। जिन भजनों में शिविर के पहले दिन आनंद नहीं आ रहा था, अब लगातार उन्हीं भजनों को सुन रहा हूँ

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गिरीश कुमार (जयपुर, राजस्थान)

Words of Devotees

भगवान को जानने की इच्छा प्रारंभ से ही थी मगर जो भी मिलता अपने मन के अनुसार भगवान की परिभाषा बता कर चला जाता । समझ आया कि वास्तविक भक्ति क्या है, भक्ति तो इंद्रियों अर्थात आँख, नाक, कान, त्वचा, रसना का विषय है ही नहीं। भक्ति तो सिर्फ और सिर्फ मन का विषय है।

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आशुतोष सिंह

(अध्यापक – आगरा, उत्तर प्रदेश)

बहुत कुछ जानने को और समझने को मिला हमें घर बैठे, बहुत सारी गलत धारणाएं टूटी, अंधविश्वास दूर हुए, सनातन धर्म के सभी तीज-त्योहारों, मान्यताओं, भगवान की लीला, नाम, रूप, गुण, धाम, संत-महापुरुषों के बारे में, उनके पद भजन, हरि-गुरु सभी के बारे में इतना कुछ मिला कि जिसकी मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था।

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हर्षद वशिष्ठ

(CA - पलवल, हरियाणा)

भगवान तो केवल प्रेम का विषय हैं, वह सिर्फ प्रेम ही देते हैं कभी दंड नहीं देते। गुरुजी के इस सिद्धांत से मुझे अपने भगवान से अथाह प्रेम होने लगा और डर लगना बन्द हो गया, पूजा-पाठ से जुड़े अनेक भ्रम भी दूर हो गए। यह भी समझ आ गया कि भगवान सिर्फ भाव से ही मिल जाते हैं, उनको हमारे रुपये-पैसे की आवश्यकता नहीं है।

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सोनम कटियार

(अध्यापक – कानपुर, उत्तर प्रदेश)

अब तक जिस कर्मकाण्ड में फंसे हुए थे, उनसे धीरे-धीरे बाहर निकलने लगे। जीवन को जीने का तरीका समझ में आने लगा। अब तक सिर्फ माला फेरना और मंदिर जाने को ही भक्ति समझ रहे थे लेकिन भैयाजी से मिलकर भक्ति का असली मतलब जाना। भैया जी ने भक्ति को बिल्कुल सहज बना दिया, बिना किसी डर के भक्ति करना सिखा दिया।

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योगेश कुमार गर्ग

(भरतपुर, राजस्थान)

अब उनके नाम, रूप, गुण, लीला में जो रस मिलने लगा है, उसका वर्णन शब्दों में तो नहीं किया जा सकता, उसको सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। कोई सही-सही तत्वज्ञान और प्रभु प्रेम का रस चखना चाहता है तो विश्वास कीजिए आप बिल्कुल सही जगह हैं।

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हिमांशु चौहान

(अध्यापक - अमरोहा, उत्तर प्रदेश)

एक-एक करके सारे प्रश्नों के उत्तर मिलते गए। पूजा का मतलब समझ में आया, भाव कितने जरूरी है यह समझ में आ गया l प्रभु से प्रेम करना, प्रिया-प्रियतम के लिए रोना, रोने में कितना सुख और आनंद है यह सब गुरुवर से जाना ।

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मयूरी शर्मा

(आसनसोल, पश्चिम बंगाल)

अध्यात्म दर्शन’ समूह में मेरे सभी प्रश्नों के जवाब भईया जी के द्वारा मिले और दिमाग पर जमी हुई धूल भी झड़ गई। वृंदावन शिविर में मैंने जाना कि भगवान डरने के लिए नहीं बल्कि प्रेम करने लिए हैं, उनसे प्रेम करना है मन से। जहाँ-जहाँ मन जाए वहाँ-वहाँ श्रीकृष्ण को खड़ा कर दीजिए, सब कुछ आसान हो जाएगा और हुआ भी है।

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वर्षा भदौरिया

(सिरोही, राजस्थान)

घर का वातावरण आध्यात्मिक रहा है लेकिन अध्यात्म का सही अर्थ परम आदरणीय श्री श्वेताभ पाठक भैया जी के सान्निध्य में आकर ज्ञात हुआ। इन साधना शिविरों के द्वारा हम क्रियात्मक साधना कर सकते हैं, शिविर के माध्यम से हम अपनी साधना को बढ़ा सकते हैं। सभी को शिविर में जरूर पहुँचना चाहिए क्योंकि हम जैसे सांसारिक व्यक्तियों के लिए साधना को बढ़ाने का यही एकमात्र उपाय है।

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चेतना शर्मा

(दिल्ली)

भक्ति-भाव, पूजा, बचपन से ही परम्परागत रूप से व्यवहार में थी परंतु विश्वास में कमी थी। श्री गुरुदेव श्वेताभ पाठक जी के सान्निध्य में आने के बाद वह पूरी हो गई। इनके लेख सीधा दिल को चीरते हुए निकलते थे। ऐसा लगता था यही तो मैं सोचता हूँ, ऐसा ही तो मैं हूँ।

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चंद्रशेखर पाठक

(बैंकर – जयपुर, राजस्थान)

ईश्वर की तस्वीरें पहले निर्जीव सी लगती थीं परंतु अब सजीव लगने लगी है; ऐसा लगता है कि वह मुझे देख कर मुस्कुरा रहे हैं । ईश्वर का आभास अपने आस-पास होने लगा है, ‘भाव’ का अर्थ समझ आने लगा है। जिन भजनों में शिविर के पहले दिन आनंद नहीं आ रहा था, अब लगातार उन्हीं भजनों को सुन रहा हूँ

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गिरीश कुमार

(जयपुर, राजस्थान)